जानिए पूर्ण मत्स्येन्द्रासन विधि, लाभ और सावधानी योग गुरु ओम कालवा के साथ

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पूर्ण मत्स्येन्द्रासन क्या है? |
इससे पहले आप “अर्द्धमत्स्येन्द्रासन” का अभ्यास कर चुके हैं। पूर्ण मत्स्येन्द्रासन नाथपन्थी गुरू योगी मच्छेन्द्रनाथ का आसन है। वे इसी आसन पर बैठकर साधना करते थे, इसलिये इसे ‘पूर्ण मत्स्येन्द्रासन’ कहा जाता है।

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लाभ

यह आसन रीढ़, जांघों एवं घुटनों की हड्डियों को मजबूत एवं लचकदार बनाता है। शरीर की सभी मांसपेशियों को इससे लाभ पहुंचता है।
यह मुधमेह, यौन-रोग, कब्ज आदि को दूर करके बल, वीर्य, शुक्राणु की वृद्धि करता है।
इस आसन से महिलाओं को मासिक धर्म में लाभ होता है।
इस आसन में ध्यान लगाने से असीम ऊर्जा प्राप्त होती है और चक्र बढ़ जाने से शरीर कान्तिमय होता है।

विधि

सर्वप्रथम आप जमीन पर दरी या कम्बल बिछाकर टांगों को सामने की ओर फैलाकर बैठें। बैठे हुए अपनी दायीं टांग को घुटने से मोड़कर बायीं जांघ के ऊपर रख दें। पैर का एंड बायीं जांघ मूल में टिक जाना चाहिये।

अब बायें घुटने को खड़ा करें और पैर को बैठे हुए, दायें घुटने के ऊपर से ले जाकर भूमि पर पूरे पैर को टिका दें। अब दायें हाथ को बायें घुटने के ऊपर से लाते हुए बायें पैर को पकड़ लें। बायां हाथ पीठ के पीछे की ओर रखें, को बिल्कुल सीधा रखें, ग्रीवा को हा ठोड़ी को बायें कन्धे की ओर ले जायें।

कुछ क्षण इसी स्थिति में रुके रहने के पश्चात्‌ पूर्व स्थिति में आ जायें। कुछ समय विश्राम के पश्चात्‌ फिर दूसरी ओर से क्रिया आरम्भ करें। यह आसन थोड़ा मुश्किल है, परन्तु अर्द्धमस्स्येन्द्रासन का पूरी तरह से अभ्यास हो जाने के बाद ही इस आसन का अभ्यास धीरे-धीरे करने से यह सुगमता से होने लगेगा।

विशेष
इस आसन में दायें पैर को पद्मासन की अवस्था में मोड़कर बायें पैर की जांघ पर रखा जाता है।

पूर्ण मत्स्येन्द्रासन करने का समय
इस आसन को शुरू-शुरू में प्रतिदिन एक बार तथा बाद में पांच बार तक कर सकते हैं। दोनों ओर से एक मानकर गिनती करें।

सावधानी

पूर्ण मत्स्येन्द्रनाथ योग करते समय निम्नलिखित सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए है। इन रोगो में अभ्यास नहीं किया जाना चाहिए

पेप्टिक अल्सर
हरनिया
अतिगलग्रंथिता
रीढ़ की हड्डी की चोट
पेट में चोट
पीठ दर्द
गर्भावस्था के दो या तीन महीने बाद महिलाओं को अभ्यास नहीं करना चाहिए।
कटिस्नायुशूल या स्लिप्ड डिस्क के दौरान इस योग को नहीं करना चाहिए।
घुटने के दर्द के मामले में इसका अभ्यास नहीं किया जाना चाहिए।

योग गुरु ओम कालवा
प्रदेश संरक्षक
राजस्थान योग शिक्षक संघर्ष समिति