बीकानेर जिले में अपने आप में अनूठा यह सैकड़ाें वर्ष पुराना शिव मंदिर

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बीकानेर शहर से 15 किमी दूर उदयरामसर गांव से ठीक पहले एक स्थान है आसाेपा धाेरा। यहां भगवान शिव के दाे मंदिर हैं। एक नया मंदिर है जाे 1941 में बना था। दूसरा है पातालेश्वर गुफा महादेव मंदिर। यह मंदिर बीकानेर जिले में अपने आप में अनूठा है। धाेरे के 25 फीट नीचे बने इस मंदिर में बहुत कम लाेग पहुंच पाते हैं। दूर से देखने पर रेत के नीचे छिपा यह मंदिर किसी काे दिखाई नहीं देता।

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दिखाई देती है ताे केवल एक सफेद गुमटी और दूसरी तरफ गुफा का प्रवेश द्वार। मंदिर के पुजारी राम किशन शर्मा बताते हैं कि मंदिर कितना पुराना यह काेई नहीं जानता। यह सैकड़ाें वर्ष पुराना मंदिर है, जिसमें एकसाथ दाे लाेग ही नीचे पहुंचकर अभिषेक कर सकते हैं। यानी पुजारी समेत तीन लोग एक समय में रह सकते हैं। मंदिर में जाने के लिए 19 सीढ़ियां बनी हैं जिनकी ऊंचाई एक से डेढ़ फीट है।

शिव मंदिर सैकड़ों साल पुराना, 45 साल पहले टीला धंसने से हनुमानजी की मूर्ति निकली थी

बकौल पुजारी रामकिशन, करीब 45 साल पहले तक यहां शिव मंदिर की ही पूजा होती थी। अचानक एक दिन रेत का टीला धंसा तो लोगों को पटि्टयों के टुकड़े नजर आए। रेत हटाई तो नीचे हनुमानजी की आदमकद मूर्ति निकली। वह भी आज गुफा वाले हनुमान मंदिर के नाम से जानी जाती है।

जलेरी का जल पाताल में ही जाता है – 25 फीट गहराई पर बने शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल किसी के पैराें में नहीं आता। यह जल सीधे पाताल में ही जाता है। जलेरी के पास ही ऐसी व्यवस्था की गई है कि शिवलिंग पर अर्पित जल सीधे एक गड्ढ़े में जाता है और वहां से जमीन के अंदर। मंदिर पुजारी बताते हैं कि सावन के महीने में जल के साथ दूध, दही व घी चढ़ने पर पाताल पानी जाने का सिस्टम चाेक हाे जाता है। इस पर उसे साफ कर बाहर निकालते हैं, वरना यहां से जल कभी बाहर निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

 

रेत बढ़ती रहती है, प्रवेश द्वार कई बार ऊंचा करना पड़ा: रेत के टीले अपना आकार व ऊंचाई बदलते हैं। इसी कारण गुफा मंदिर के प्रवेश द्वार पर कई बार रेत बढ़ी ताे श्रद्धालुओं ने मिलकर उसके प्रवेश द्वार काे ऊंचा करवाया। मंदिर पुजारी कहते हैं कि इसी कारण मंदिर की सीढ़ियों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है।