कोरोना की वजह से रिश्तों में दूरियां आने की अब तक कई खबरें सामने आ चुकी हैं। ऐसे में गोरखपुर की यह खबर रिश्तों की मजबूती का सबूत है। यहां रहने वाले पंकज शुक्ला और उनकी प्रेग्नेंट बहन कोरोना से संक्रमित थे। दोनों का एक अस्पताल में इलाज चल रहा था। एक दिन अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म होने लगी। स्टाफ ने बताया कि एक घंटे में ऑक्सीजन खत्म हो जाएगी। कहीं से कोई इंतजाम नहीं हो रहा था। ऐसे में पंकज ने खुद इसकी जिम्मेदारी संभाली।
कोविड पॉजिटिव होने के बावजूद वह अपनी बहन और दूसरे मरीजों की जान बचाने के लिए एंबुलेंस लेकर निकल पड़े। आधे घंटे में ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर लौट भी आए। इस दौरान उन्होंने पूरी सावधानी रखी कि उनका संक्रमण दूसरों तक न फैल जाए। पंकज अपनी बहन के साथ कोरोना को मात देकर घर लौट आए हैं। इसके बाद उनकी यह कहानी सामने आई।
परिवार की देखभाल के लिए पंकज अकेले
गोरखनाथ इलाके के पुराना गोरखपुर में रहने वाले पंकज शुक्ला ने बताया कि 20 दिन पहले उन्हें बुखार आया। जांच कराई तो 21 अप्रैल को उनकी रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आ गई। इसी दौरान प्रेग्नेंट बहन की भी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। उस वक्त परिवार में पंकज ही देखभाल करने वाले थे। उन्होंने एंबुलेंस बुलाई और बहन को भर्ती करने के लिए हॉस्पिटल ढूंढने निकल पड़े। काफी खोजबीन के बाद राजेंद्र नगर इलाके एक हॉस्पिटल में बेड मिल गया। इसके बाद पंकज भी बहन के साथ अस्पताल में भर्ती हो गए।
ऑक्सीजन की कमी से फूलने लगी सांसें
पंकज बताते हैं कि 23 अप्रैल को बहन की तबीयत बिगड़ने लगी। तब डॉक्टर ने उसे ऑक्सीजन लगाई। इसी दौरान बताया गया कि हॉस्पिटल में सिर्फ एक घंटे की ऑक्सीजन है। इसलिए जिस पेशेंट को कहीं और जाना है तो वह जा सकता है।
पंकज ने बताया कि ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए। आनन-फानन में उन्होंने हॉस्पिटल इंचार्ज और कर्मचारियों से बात की। उनके सामने काफी देर तक गिड़गिड़ाते रहे। कर्मचारियों ने जवाब दिया कि ऑक्सीजन नहीं मिल रही है। हम क्या कर सकते हैं?
ड्राइवर भाग गया तो खुद एंबुलेंस निकाली
पंकज ने बताया कि गीडा (गोरखपुर डेवलेपमेंट अथॉरिटी) की एक गैस एजेंसी में बात की, तो पता चला कि सिलेंडर लेकर आएंगे तो उसे भर दिया जाएगा। यह बात उन्होंने हॉस्पिटल इंचार्ज को बताई। तब सवाल उठा कि ऑक्सीजन लेने कौन जाएगा? एंबुलेंस का ड्राइवर पहले ही भाग चुका था। इसके बाद पंकज ने कर्मचारियों की मदद से हॉस्पिटल में रखे आक्सीजन सिलेंडर एंबुलेंस में रखवाए और खुद एंबुलेंस चलाकर गीडा पहुंच गए।
बहन के साथ बाकी मरीजों को भी था बचाना
पंकज बताते हैं कि अस्पताल में ऑक्सीजन की किल्लत से दूसरे मरीजों के तीमारदार भी परेशान हो उठे थे। पंकज ऑक्सीजन लेकर पहुंचे तो उनकी बहन के साथ ही दूसरे मरीजों की जान बचाई जा सकी। वह कहते हैं कि हॉस्पिटल में 18 दिन कैसे बीते, मैं कभी नहीं भूल सकता। हर घंटे रोने-चिल्लाने की आवाज मुझे डरा देती थी। मैं तुरंत अपनी बहन को देखने पहुंच जाता कि उसकी सांसें तो चल रही हैं।
जिदंगी की जंग जीत घर पहुंचे भाई-बहन
एक प्राइवेट कंपनी में मार्केटिंग का काम करने वाले पंकज मंगलवार को बहन को सही सलामत घर लेकर पहुंचे। पंकज ने बताया कि बहन का दर्द देखकर मुझे मेरा दर्द पता ही नहीं चला। इसी बीच मैंने 14 दिन पर अपनी जांच कराई तो रिपोर्ट निगेटिव भी आ गई। इस दौरान मुझे केवल अपनी बहन की चिंता सता रही थी। पापा इस दुनिया में नहीं हैं। उनके जाने के बाद बहन की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी।
गोरखपुर ट्रामा सेंटर के डायरेक्टर डॉक्टर राजेश श्रीवास्तव ने बताया
गोरखपुर ट्रामा सेंटर के डायरेक्टर डॉक्टर राजेश श्रीवास्तव ने बताया कि शुरुआती दौर में ऑक्सीजन की समस्या थी। एंबुलेंस का ड्राइवर बीमार था। इसलिए उसने एंबुलेंस चलाने से इनकार कर दिया था। पंकज खुद एंबुलेंस चलाकर गए थे। पंकज खुद भी कोरोना संक्रमित थे, इसलिए वे सुरक्षा के सभी उपाय अपनाते हुए प्लांट तक गए थे। कोई दूसरा संक्रमित न हो जाए, इसका भी ध्यान रखा गया।