राज्य सरकार की लापरवाही, पशु चिकित्सालय में डॉक्टरों की कमी

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Last Updated on 21, January 2022 by Sri Dungargarh News

Luni: राजस्थान में कहने को तो ऊँट रेगिस्तान का जहाज कहलाता है लेकिन धरातल पर पशु पक्षियों के लिए सरकार की तरफ से कोई ठोस उपचार के लिए व्यवस्था नहीं है. वहीं जगह-जगह पशु चिकित्सालय भी खुले हैं लेकिन धरातल पर ना तो कोई डाक्टर की व्यवस्था और ना कोई ठोस कार्रवाई की जा रही है लेकिन इन दिनों लूणी क्षेत्र में पशुपालकों की संख्या दिनों दिन घटती जा रही है, पशु पालकों का कहना है कि पहले ऊंटों की संख्या 200 से अधिक थी लेकिन अब लूणी में दो-दो पंचायत समिति बनने के बावजूद भी धरातल पर पशु पक्षियों के लिए सरकार की ओर से पशु चिकित्सालय तो खोले गए हैं लेकिन ना ही डॉक्टरों की पूर्ण रूप से व्यवस्था की गई है.
ऐसे में पशुपालकों की संख्या विलुप्त होती जा रही है, जोधपुर जिले के डोली गांव के पशुपालक लालाराम देवासी ने ऊंटों की कहानी सुनाते हुए भावुक हो जाते हैं, कहते हैं, “रेगिस्तान की तपती रेत पर 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने वाला ऊँट अब विलुप्ति की कगार पर आ गया है.” आगे वो ऊँट के गुण गिनाते हैं, “सवारी की दृष्टि से ऊँट की गोमठ नस्ल सबसे उपयुक्त मानी जाती है, बोझा ढोने के लिए ऊँट की बीकानेरी नस्ल सहूलियत भरी समझी जाती है, ऊंटनी का दूध सेहत के लिए लाभदायक और औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है, ऊंटनी का दूध दो सौ से तीन सौ रुपए लीटर तक बिकता है. ऊंटनी के दूध का उपयोग मंदबुद्धि, कैंसर, लीवर और शुगर के साथ कई बीमारियों के इलाज में उपयोग किया जाता है.”
वर्ष 1984 में स्थापित राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र पिछले डेढ़ दशक से ऊंटनी के दूध और इसकी उपयोगिता पर काम कर रहा है. इस संस्थान के शोध के अनुसार ऊंटनी का दूध कई बीमारियों के उपचार में लाभकारी है. केंद्र ऊँट पालकों को ऊँट के दूध से कई तरह के उत्पादन बनाने का प्रशिक्षण भी देता है .
रेगिस्तान में विकास हुआ तो ऊँट महत्वहीन हो गए
छपनिया अकाल (1899) जैसे भीषण अकाल के समय रेगिस्तान वासियों का एकमात्र सहारा यहां का ऊँट था, दशकों तक ऊँट खेत जोतने से लेकर सामान ढोने यहां तक की थार में सवारी का जरिया बने रहे, जैसे-जैसे विकास को पंखे लगे ऊँट अपना महत्व खोते चले गए, ऊंटों के संरक्षण के लिए प्रदेश में कई कदम उठाए भी उठाए गए हैं. राजस्थान सरकार ने 30 जून 2014 को ऊँट को राज्य पशु घोषित किया.
उसके एक साल बाद यानी 2015 में राजस्थान सरकार “राजस्थान ऊँट अधिनियम लेकर आई जिसका उद्देश्य ऊंटो के वध को रोकने और राज्य से बाहर उनकी ख़रीद फ़रोख़्त पर रोक लगा कर ऊंटों का संरक्षण करना था. ऊंटों के संरक्षण संवर्धन के लिए प्रदेश सरकार ने दो अक्टूबर 2016 को उष्ट्र विकास योजना शुरू की थी, जिसके तहत ऊँट पालन को बढ़ावा देने के लिए ऊंटनी के प्रजनन पर तीन किस्तों में 10 हजार रुपए दिए जाने थे, 3135.00 लाख रुपए की योजना सिर्फ 4 साल के लिए थी. ऊँट पालकों के अनुसार योजना खानापूर्ति थी जो बंद हो गई.

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